टैली प्राइम:-
परिभाषा:- टैली एक फायनेंसिल अकांटिग साफ्टवेयर है। जिसका उपयोग व्यापार में होने वाले व्यवहारो जैसे - क्रय-विक्रय, लाभ-हानि, आय-व्यय, प्राप्ति-भुगतान इत्यादि का क्रमबद्ध रिकार्ड कर ; रिपोर्ट, सारांश और विश्लेषण किया जाता है। इसके अलावा कर्मचारियो का भुगतान तथा कर (टैक्स) से संबधित कार्य भी किया जा सकता है। इसे टैली साल्यूसन द्वारा सन् 1986 में विकसित किया गया था। टैली का नवीनतम संस्कण टैली प्राइम है।
टैली की महत्वपूर्ण परिभाषा :-
टैली की परिभाषा जानना उतना ही आवश्यक है जितना एक कार चलाने के पहले कार का गियर, ब्रेक, क्लच, स्टीयरिग कैसे कार्य करता है बिना इनके समझ का कार चलाना संभव नही है। इसी प्रकार टैली सीखने से पहले अकांटिग के कुछ परिभाषा को जानना भी अति आवश्यक है। खासकर ऐसे विद्यार्थी जो कार्मस बैंकग्राउंड के न हो उसके लिए परिभाषा को जानना आवश्यक है क्योकि ये शब्द उनके लिए पहली बार सुनना और पढ़ना होगा।
टैली का पूरा नाम :- Full form of TALLY
T = Transaction
A = Allowed
L = Linear
L= Line
Y = Yard
व्यापार(Trade):- लाभ कमाने के उद्देश्य से किया गया कोई भी वैधानिक कार्य व्यापार कहलाता है। ज्यादातर व्यक्ति व्यापार ही करते है। क्योकि इसमें किसी एक स्थान से समान को खरीद कर बेचा जाता है। जैसे एक कपड़े के व्यापार द्वारा एक होलसेल मार्केट से कपड़ा लाकर बेचना व्यापार ही है।
पेशा:- ऐसा कोई भी कार्य जिसके लिए हमें पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। पेशा कहलाता है। जैसे:- शिक्षक, डॉक्टर, वकील, इंजीनीयर आदि।मालिक(Owner):- व्यापार में जों व्यक्ति पूँजी लगाता है तथा लाभ-हानि वहन करने का अधिकारी होता है, व्यापार का मालिक कहलाता है। यदि व्यापार का मालिक एक व्यक्ति है तो उसे एकाकी व्यापारी तथा दो या दो अधिक व्यक्ति हो, तो उसे साझेदार तथा बहुत से लोग मिलकर व्यापार चलाते है तो उसे अंशधारी कहते है।
संपत्ति(Assets):- ऐसे वस्तुएँ जो व्यापार को चलाने के अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है तथा जिसके बैगर किसी भी व्यापार की परिकल्पना नही की जा सकती सपंत्ति कहलाता है।
यह दो प्रकार को होता है
(1) स्थायी संपत्ति(Fixed Assets)
(2) अस्थायी संपत्ति (Current Assets)
(1) स्थायी संपत्ति (Fixed Assets):- ऐसे संपत्ति जो व्यापार में लंबे समय के लिए खरीदी जाती है तथा इसे बेचने पर उचित मूल्य प्राप्त होता है। स्थायी संपत्ति कहलाता है।
जैसे- फर्नीचर, बिल्डिंग, जमीन, मशीनरी, कम्प्यूटर आदि
(2) अस्थायी संपत्ति (Current Assets):- ऐसे संपत्ति जो व्यापार में घटती या बढ़ती रहती है। अस्थायी संपत्ति कहलाता है।
जैसे- नगद रूपया, बैंक में जमा रूपये, बेचने के लिए लाया जाने वाला समान, लेनदार एवं देनदार
दायित्व (Liabilities) :- व्यापार मे किसी व्यक्ति या व्यापारी से लिया गया उधारी रूपया या समान व्यापार के लिए दायित्व कहलाता है।
यह दो प्रकार का होता है-
(1) अस्थायी दायित्व या शार्ट टर्म दायित्व (Current Liabilities)
(2) स्थायी दायित्व या लान्ग टर्म दायित्व (Fixed Liabilities)
(1) अस्थायी दायित्व या शार्ट टर्म दायित्व:- ऐसे दायित्व जिसे एक वर्ष से कम समय के अन्दर वापस करना होता है। अस्थायी दायित्व कहलाता है।
जैसे:- लेनदार से लिया गया उधारी समान का रूपये, एक वर्ष से कम के लिए लिया गया कर्ज
(2) स्थायी दायित्व:- ऐसे दायित्व जो एक वर्ष से अधिक के लिए जाते है स्थायी दायित्व कहलाता है।
जैसे:- बैंको से लिया गया कर्ज.
खर्च (Expenses) :- खर्च को उसके प्रकृति के अनुसार दो भागो में बांटा गया है
(1) अप्रत्यक्ष खर्च (Indirect Expenses) (2) प्रत्यक्ष खर्च (Direct Expenses)
(1) अप्रत्यक्ष खर्च (Indirect Expenses) :- ऐसे खर्च जो व्यापार के लिए आवश्यक होता है परंतु कुछ समय के लिए न करने पर व्यापार को प्रभावित नहीं करता अप्रत्यक्ष खर्च कहलाता है।
जैसे- किराया, बिजली का बिल, ब्याज आदि इन खर्चो को 1 महीना न देकर दूसरे महीने में भी दिया जा सकता है।
(2) प्रत्यक्ष खर्च (Direct Expenses):- ऐसे खर्च जो व्यापार के लिए आवश्यक होते है जिनके न करने पर व्यापार प्रभावित होता है प्रत्यक्ष खर्च कहलाता है।
जैसे- मजदूरी, कोयला आदि।
आय (Income) :- व्यापार से होने वाली आय भी दो प्रकार की होती है।
(1) अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income) (2) प्रत्यक्ष आय (Direct Income)
(1) अप्रत्यक्ष आयः- ऐसे आय जो मुख्य व्यापार के अलावा किसी अन्य स्त्रोत से प्राप्त हुआ हो अप्रत्यक्ष आय कहलाता है।
जैसे:- किराया से प्राप्त आय, कमीशन, ब्याज, आदि।
(2) प्रत्यक्ष आयः- ऐसे आय जो मुख्य व्यापार से प्राप्त होता है प्रत्यक्ष आय कहलाता है।
जैसेः- व्यापार में विक्रय किये जाने पर होने वाली आय।
लेनदार(Sundry Creditor) :- ऐसे व्यापारी जिससे व्यापार द्वारा उधारी से समान खरीदा जाता है तथा बाद में उस व्यापारी का उधारी रूपये देना होता है लेनदार कहलाता है।
देनदार (Sundry Debtor) :- ऐसे व्यापारी जिसको व्यापार द्वारा उधारी समान बेचा जाता तथा जिससे बाद रूपये बेचा गया समान का रूपये लेना होता है देनदार कहलाता है।
क्रय (Purchase) :- पुनः विक्रय के लिए खरीदा गया कोई भी समान क्रय कहलाता है।
क्रय वापसी (Purchase Return) :- खरीदे गये समान का किसी कारण वश (टूट-फूट या आर्डर दिये गये समान के स्थान दूसरे समान भेजे जाने पर) वापस कर दिया जाना क्रय वापसी कहलाता है।
विक्रयः(Sales) - लाभ कमाने के उद्देश्य से क्रय किये गये समान बिक्री विक्रय कहलाता है।
विक्रय वापसी (Sales Return):- बेचे गये समान का किसी कारण वश (टूट-फूट या आर्डर लिये गये समान के स्थान दूसरे समान भेजे जाने पर) समान का वापस आ जाना विक्रय वापसी कहलाता है।
2. वास्तविक खाता (Real Account) :- वास्तविक खाता के अंतर्गत संपत्तियों से सबंधित लेखांकन का कार्य किया जाता है।
जैसे:- कैश, फर्नीचर, मशीनरी, कम्प्यूटर, जमीन, भवन आदि।
वास्तविक खाता के नियम
व्यापार में संपत्तियो का आना डेबिट(DR) में
तथा संपत्तियों का जाना क्रेडिट(CR) में रखा जाात है।
उदाहरण के लिए व्यापार के लिए एक कम्प्यूटर खरीदा।
अब यहाँ दो अकाउंट है कम्प्यूटर और कैश दोनो ही वास्तविक खाता है। अतः जो व्यापार में आ रहा है उसे डेबिट करेंगे अर्थात् कम्प्यूटर डेबिट तथा जो व्यापार से जा रहा उसे क्रेडिट करेंगे अर्थात् कैश क्रेडिट होगा।
Computer A/C DR
TO Cash A/C CR
3. अवास्तविक या नाममात्र खाता (Nominal Account):- इसके अंतर्गत आय-व्यय, लाभ-हानि, तथा क्रय-विक्रय सें सबंधित लेखांकन का कार्य किया जाता है।
जैसे - खरीदी, बिक्री, सैलरी देय, ब्याज प्राप्ति या देय, किराया प्राप्ति या देय, कमीशन प्राप्ति या देय आदि।
नाममात्र खाते का नियम:-
व्यय, हानि तथा क्रय(परचेस) को डेबिट में
तथा आय, लाभ तथा विक्रय(सेल्स) को क्रेडिट में किया जाता है।
उदाहरण के लिए खरीदी किया नगद से ।
खरीदी को कहते है परचेस अर्थात यह नाममात्र खाता है और नगद (कैश) वास्तविक खाता है। तो इसमें दोनो का नियम लागू होगा। पहले परचेस का देखते है यह डेबिट में है और कैश वास्तविक खाता के नियम से जाना क्रेडिट होगा।
Purchase A/C DR
TO Cash A/C CR
इसी प्रकार निम्न प्रश्नों को देखते है:-
1. अभिलाष ने 500000 रू. से व्यापार प्रारंभ किया।
अभिलाष कैपिटल जो व्यक्ति व्यापार में पूंजी लगाता है उसे कैपिटल कहते है अर्थात् अभिलाष कैपिटल अकाउंट है और व्यक्ति है इसलिए व्यक्तिगत खाता है इसी प्रकार कैश संपत्ति है यह वास्तविक खाता है। इसमें दोनो अकाउंट का नियम लगेगा
व्यक्तिगत खाता में प्राप्त करने वाला डेबिट होता है, और देने वाला क्रेडिट अर्थात् अभिलाष अपना पूंजी व्यापार में लगा रहा है दे रहा है तो वह क्रेडिट होगा।
इसी प्रकार वास्तविक खाता में संपत्ति का आना डेबिट तथा जाना क्रेडिट होता है तो कैश डेबिट होगा।
Cash a/c (Real A/c) DR
tp Abhilash capital a/c (Personal A/c) CR
2. एस.बी.आई बैंक में 10000 रू. जमा किये।
इसमें दो अकाउंट है एस.बी.आई. और कैश
एस.बी.आई. व्यक्तिगत खाता और कैश वास्तविक खाता है।
दोनो के नियम के अनुसार कैश एस.बी.आई बैंक में जमा कर रहे है तो प्राप्त करने वाला एस.बी.आई बैंक डेबिट होगा इसी प्रकार कैश व्यापार से बैं में जा रहा है तो वह क्रेडिट होगा।
Cash A/c(Real A/c) Dr
to SBI Bank A/c (Personal A/c) Cr.
3. फर्नीचर खरीदा 50000 रू. नगद से।
4. कम्प्यूटर खरीदा 35000 रू. उधारी से श्री कम्प्यूटर से।
5. समान खरीदा 30000 रू. का
6. समान खरीदा 40000 रू. का उधारी से अशोक ट्रेडर्स से।
7. समान बेचा 20000 रू. का।
8. समान बेचा 25000 रू. का मयंक स्टोर्स को उधारी से।
9. एस.बी.आई बैंक से 10000 रू. निकासी किया।
10. किराया दिया 5000 रू.